Saturday, March 9, 2019

!ड्रैगन फ्रूट(dragon fruit) की विशेषताएं।



1 Acre =12 Kattha =1,700 biruwa=1 biruwa 50kg to 100kg / barsha
1Kg =200 to 400
1 katthama=141 biruw0= 1 Biruwa*500gm sardar ekfal =70kg *200=14,000/Bot
14,000 *141 bot=19,00,000 ???????
9th month fruite shuru hunchha
ड्रेगन फ्रूट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु : इसके पौधे कम उपजाऊ मिट्टी और तापमान में होने वाले लगातार परिवर्तनों के बीच भी जीवित रह सकते हैं। इसके लिए 50 सेमी वार्षिक औसत की दर से बारिश की जरूरत होती है जबकि 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। बहुत ज्यादा सूर्य प्रकाश को इसकी खेती के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। सूरज की रौशनी जिन इलाके में ज्यादा हो उन इलाकों में बेहतर उपज के लिए छायादार जगह में इसकी खेती की जा सकती है। उपयुक्त मिट्टी : इस फल को रेतिली दोमट मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी तक नाना प्रकार के मिट्टियों में उपजाया जा सकता है। हालांकि बेहतर जिवाश्म और जल निकासी वाली बलुवाई मिट्टी इसकी उपज के लिए सबसे बेहतर है। ड्रेगन फ्रूट की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 तक उपयुक्त माना जाता है। ड्रेगन फ्रूट के लिए खेत की तैयारी : खेत की अच्छी तरह से जुताई की जानी चाहिए ताकि मिट्टी में मौजुद सारे खर पतवार खत्म हो जाएं। जुताई के बाद कोई भी जैविक कंपोस्ट अनुपातनुसार मिट्टी में दिया जाना चाहिए। ड्रेगेन फ्रूट की खेती में बुआई या पौधों को लगाने की विधि : ड्रेगेन फ्रूट की खेती में बुआई का सबसे सामान्य तरीका है काट कर लगाना। हालांकि बीज के जरिए भी इसकी बुआई की जा सकती है लेकिन चुंकि बीज पनपने में लंबा वक्त लगता है और मूल पेड़ के गुण उस पौधे में आए इसकी संभावना भी कम रहती है इसलिए इसे इसकी वाणिज्यिक खेती के अनुकूल नहीं माना जाता है। आपको गुणवत्ता पूर्ण पौधे की छंटाई से ही ड्रेगेन फ्रूट के सैंपल तैयार करने चाहिए। तकरीबन 20 सेमी लंबे सैंपल को खेत में लगाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। इनको लगाने से पहले मूल पेड की छंटाई करके इनका ढेर बना लेना चाहिए। फिर इन पौधों को सुखे गोबर के साथ मिला कर मिट्टी बालू और गोबर के 1:1:2 के अनुपात में मिलाकर रोप देना चाहिए। ये जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि इन्हें रोपने से पहले इन्हें छाया में रखा जाए ताकि सूरज की तेज रोशनी ने इन सैपलिंग को नुकसान न पहुंचे। दो पौधों के रोपने की जगह में कम से कम 2 मीटर की खाली जगह छोड़ देनी चाहिए। पौधे को रोपने के लिए 60 सेमी गहरा, 60 सेमी चौड़ा गड्डा खोदा जाए। इन गड्डों में पौधों की रोपाई के बाद मिट्टी डालने के साथ साथ कंपोस्ट और 100 ग्राम सुपर फास्फेट भी डालना चाहिए। इस तरह से एक एकड़ खेत में ज्यादा से ज्यादा 1700 ड्रेगन फ्रूट के पौधे लगाए जाने चाहिए। इन पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद करने के लिए इनके सपोर्ट के लिए लकडी का तख्त या कंक्रीट लगाया जा सकता है। ड्रेगेन फ्रूट की खेती में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल : ड्रेगेन फ्रूट के पौधों की वृद्धि के लिए जिवाश्म तत्व प्रमुख भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक पौधे के सटिक वृद्धि के लिए 10 से 15 किलो जैविक कंपोस्ट/जैविक उर्वरक दिया जाना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक साल दो किलो जैविक खाद की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए। इस फसल को समुचित विकास के लिए रासायनिक खाद की भी जरूरत पड़ती है। वानस्पतिक अवस्था में इसको लगने वाली रासायनिक खाद का अनुपात पोटाश:सुपर फास्फेट:यूरिया = 40:90:70 ग्राम प्रति पौधे होता है। जब पौधों में फल लगने का समय हो जाए तब कम मात्रा में नाइट्रोजन और अधिक मात्रा में पोटाश दिया जाना चाहिए ताकि उपज बेहतर हो। फूल आने से लेकर फल आने तक यानि की फुल आने के ठीक पहले (अप्रेल), फल आने के समय( जुलाई – अगस्त) और फल को तोड़ने के दौरान ( दिसंबर) तक में इस अनुपात में रासायनिक खाद दिया जाना चाहिए : यूरिया:सुपर फास्फेट:पोटाश =50ग्राम:50 ग्राम:100 ग्राम प्रति पौधे। रासायनिक खाद प्रत्येक साल 220 ग्राम बढ़ाया जाना चाहिए जिसे बढ़ाकर 1.5 किलो तक किया जा सकता है। ड्रेगेन फ्रूट के खेती की खासियत ये है कि इसके पौधों में अब तक किसी तरह के कीट लगने या पौधों में किसी तरह की बीमारी होने का मामला सामने नहीं आया है। ड्रेगेन फ्रूट के पौधे एक साल में ही फल देने लगते हैं। पौधों में मई से जून के महीने में फूल लगते हैं और अगस्त से दिसंबर तक फल आते हैं। फूल आने के एक महीने के बाद ड्रेगेन फ्रूट को तोड़ा जा सकता है। पौधों में दिसंबर महीने तक फल आते हैं। इस अवधि में एक पेड़ से कम से कम छह बार फल तोड़ा जा सकता है। फल तोड़ने लायक हुए हैं या नहीं इसको फलों के रंग से आसानी से समझा जा सकता है।

ड्रैगन फ्रूट एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, और पोषण गुणों का एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है जो खतरनाक रोगो से शरीर कॊ मुक्त करवाता हैं इसके नन्हे बीज केन्सर से लड़ने में भी मदद करते हैं !ड्रैगन फ्रूट(dragon fruit) की विशेषताएं।

ड्रैगन फ्रूट एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटीबायोटिक, और पोषण गुणों का एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है जो खतरनाक रोगो से शरीर कॊ मुक्त करवाता हैं इसके नन्हे बीज केन्सर से लड़ने में भी मदद करते हैं !
· प्रतिरक्षा बढ़ाता है। (Boosts Immunity)
· विटामिन से भरपूर…
ड्रैगन फल बी विटामिन समूह सहित विटामिन सी के अलावा अन्य विटामिनों भी मौजूद है जैसे कि बी 1, बी 2, और बी 3 विटामिन ब्लड प्रेशर, त्वचा स्वास्थ्य, और कोलेस्ट्रॉल औऱ थायरॉयड से लड़ने में भी मदद करता हैं !
· जीवाणुरोधी गुण। (antibacterial properties)
· हृदय रोगों में सुधार करता है। (improve cardiovascular health)
· पाचन शक्ति को ठीक करता है।

ड्रैगन फ्रूट(dragon fruit) की खेती अब भारत में।

पिछले कई साल से इसे थाईलैंड ,लंका ,वियतनाम आदि से इसे निर्यात किया जा रहा है ! भारी मांग को देखते हुए, अब इसकी खेती भारत में भी होने लगी है, पश्चिम भारत यानि महाराष्ट्र और गुजरात और उसके बाद सुदूर उत्तर पूर्व के अर्ध पहाड़ी राज्यों वा आंध्र कर्नाटक, अरुणाचल, सिक्किम और मणिपुर के किसान इसे पिछले कुछ वर्ष से ऊगा रहे है और भारी लाभ कमा रहे है।
भारत के किसानो की दशा और दिशा बदलने के लिए हमें नई खेती की ओर जाना चाहिए। नियमित खेती को छोड़कर हमें कुछ नई फसल को उगाना चाहिए जिसमें ड्रैगन फ्रूट एक लाभ वाली फसल हो सकती है।
एक नई तरह की खेती किसान को लाभ की ओर ले जा सकती है जिससे अच्छा खासा कमा सकता है जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ एक अच्छी जीवन शैली यापन कर सकते हैं।

ड्रैगन फ्रूट (dragon fruit)का बाजार।

ढेरों औषधीय गुणों से भरपूर फल तेजी से अंतर्राष्ट्रीय जगत में अपना स्थान बनाने के बाद भारत के उपभोक्ता में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
बड़े-बड़े शहरों में इसकी डिमांड बढ़ने लगी है और बड़ी बड़ी कंपनियां जैसे कि अमोजोन( Amazon), ग्रोफर्स(grofer), अलीबाबा(alibaba) और क्राफ्ट सी(craftsy) ऑनलाइन खारीदती हैं और बेचती हैं।
आप इस फल को ऑनलाइन भी बेच सकते हैं बड़ी कंपनियों के साथ मेलजोल करके।

ड्रैगन फ्रूट (dragon fruit)की खेती क्यों ?

भारी लाभ और इस फल की लोकप्रियता को देखते हुए अब उत्तर और मध्य भारत के किसान भाई भी इसकी खेती में दिलचस्पी दिखा रहे है ।
एक बार लगाने के बाद दो से तीन साल में यह पौधा भरपूर फल देने लग जाता है जो 15 से 20 साल लगातार फल देता है और एक एकड़ की आमदन 15 से 25 लाख प्रति वर्ष होती है और देखरेख का खर्च और मेहनत बहुत कम होती है।
बीमारी और कीट पतंगों और जंगली जानवरो से भी इस पौधे को कोई खतरा नहीं है ! इसका फल लाल ,सफ़ेद और पीले रंग के गूदे में उपलब्ध है।
भारत में इसके लाल गूदे वाले फल को पसंद किया जा रहा है और इसी की खेती भी की जा रही है ! सीमेंट कंक्रीट के बने खम्बों और ऊपर गोल पहिये के सहारे लगने वाले पौधों से भरा खेत भी लोगो में भारी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

ड्रैगन फ्रूट (dragon fruit seeds)बीज और प्रशिक्षण योजना।

अगर आप ड्रैगन फ्रूट की खेती करने के इच्छुक हैं जो 200 रूपए से 400 रूपए किलो तक बिकता है।
इसके बीज और प्रशिक्षण योजना के बारे में जानकारी चाहिए तो आप श्री राकेश जी से सीधे बात कर सकते है, जो निरंतर प्रयास करते रहते हैं नई नई फसल को भारत में उपजाऊ के लिए वह हर फसल पर गहन रिसर्च करते, फिर उसको दूसरे किसानों तक पहुंचाते हैं।
वह ग्रामकुल नाम का एक किसान उत्पादक संगठन चलाते हैं जिसमे उन्नत किस्म के स्वस्थ पौधे ,खेती की तकनीक और परामर्श और सही बाजार उपलब्ध करवाते हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप सीधे संपर्क कर सकते हैं

ऐसे शुरू करें ड्रैगन फ्रूट की उन्नत खेती


एक ड्रैगन फलों के पेड़ मूल रूप से जीसस हीलोसेरियस का कैक्टस बेल है। यह मध्य अमेरिका के मूल निवासी है, लेकिन अब पूरी दुनिया में विशेषकर उष्णकटिबंधीय देशों में उगता है। यह एक बढ़ती हुई बढ़ती हुई बेल है जिसके लिए एक ऊर्ध्वाधर पोल का समर्थन करने के लिए बढ़ने की आवश्यकता होती है और फिर एक छाता जैसा गिरने के लिए एक अंगूठी होती है। इसमें 15-20 साल का जीवन काल है, इसलिए पोल और रिंग का उचित चयन महत्वपूर्ण है।
एक मजबूत और स्थायी समर्थन सुनिश्चित करने के लिए विशेष आरसीसी पोल लगाए गए हैं आमतौर पर चार पोल प्रति पोल को अधिकतम उपज देने के लिए लगाए जाते हैं। कटाई और रखरखाव के काम के दौरान उचित ध्रुव को पोल और पंक्ति अंतर को रोके रखा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के वृक्षारोपण की मिट्टी और पानी की संपत्ति के अनुसार मूल पोषक तत्व और उर्वरक समय-समय पर लागू होते हैं। धातु तैयार करने से बचा जा सकता है क्योंकि इससे पौधों को धूप / गर्मी जल जाती है।
उष्णकटिबंधीय मौसमों में आम तौर पर उत्तर-दक्षिण पंक्तियों को प्राथमिकता दी जाती है, जहां गर्मियों में तापमान 40 डिग्री से ऊपर होता है। अधिक धूप की गर्मी का कारण सूर्य की रोशनी हो सकती है लेकिन उपचारात्मक कदम आसानी से स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। इस संयंत्र से ज्यादा बीमारी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, आम समस्याओं जैसे जड़ सड़ांध, धूप की कालिमा, पक्षी हमलों आदि का आसानी से ध्यान रखा जा सकता है।
ड्रैगन फलों – पिठया, 21 वीं सदी की ‘आश्चर्यजनक फल’ भारतीय उद्यान परिदृश्य में एक क्रांति में रिंग के लिए सेट है। यह किसानों और उपभोक्ताओं के लिए एक बून है मूल रूप से मध्य अमेरिका से यह सफलतापूर्वक थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम, श्रीलंका, बांग्लादेश में वाणिज्यिक रूप से उगता है और भारत में हमारे दरवाजे पर अब दस्तक दे रहा है।
मुख्य विशेषताएं:
· किसी भी प्रकार की मिट्टी में बढ़ता है
· पानी की न्यूनतम आवश्यकता
· रखरखाव की न्यूनतम आवश्यकता
· भारतीय जलवायु स्थितियों को सहिष्णु बना सकता है
· 2 एनडी / 3 आरडी वर्ष में निवेश रिटर्न
· अधिक प्रसार / पुनर्विक्रय के लिए कटिगों का उपयोग किया जा सकता है
· स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग
· मूल्य संवर्धन उत्पाद कमांड प्रीमियम दरें
मिट्टी:
ड्रैगन फलों के पौधे किसी भी प्रकार की मिट्टी को बर्दाश्त कर सकते हैं, हालांकि वे अच्छी तरह से मिट्टी में सूखने में अच्छी तरह से बढ़ते हैं। जल को बनाए रखने वाली मिट्टी जड़ सड़ांध का कारण बन सकती है और इस घातक कारक से बचने के लिए, जल निकासी की सुविधा के लिए मिट्टी को रेत या छोटे पत्थर के कंकड़ों से मिलाया जा सकता है।
जलवायु:
भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है, जिसमें हर साल मध्यम जलवायु होती है। ड्रैगन फल उष्णकटिबंधीय मौसम के लिए अच्छी तरह से अनुकूल है। चरम भारतीय मौसम के लिए मामूली समायोजन जहां तक ​​जलवायु स्थितियों का संबंध है, सभी बाधाएं दूर कर सकते हैं।
सिंचाई:
अन्य फसलों / फलों की तुलना में कैक्टस होने के कारण ड्रैगन फल को कम पानी की आवश्यकता होती है। यह महीनों के लिए पानी के बिना जीवित रह सकता है सिंचाई का सर्वोत्तम अनुशंसित तरीका ड्रिप सिंचाई है। बाढ़ से सिंचाई की सिफारिश नहीं की जाती क्योंकि यह पानी बर्बाद करता है और फूस का काम बढ़ाता है। प्रति दिन लगभग 1 से 2 लीटर पानी प्रति संयंत्र प्रतिदिन गर्मियों / सूखे दिनों के दौरान पर्याप्त है। आपकी मिट्टी, जलवायु और पौधे स्वास्थ्य के आधार पर जल की आवश्यकता बढ़ सकती है या कम हो सकती है
उपज और अर्थशास्त्र:
पौधरोपण के बाद 18-24 महीनों के बाद ड्रैगन फल सामान्य रूप से फल होता है। यह एक वनस्पति फल पौधे है, जो आम तौर पर मानसून के दौरान या बाद में फलों के फल के साथ होता है। यह एक सीजन के दौरान 3 से 4 तरंगों में फल होता है। प्रत्येक ध्रुव का फल प्रति लहर लगभग 40 से 100 फल होता है। प्रत्येक फल का वजन लगभग 300 से 1000 ग्राम होता है। एक पोल आम तौर पर लगभग 15 से 25 किलोग्राम फल पैदा करता है। (60 / 80kgs प्रति पोल की खेती भारत में दर्ज की गई है) इन फलों को बाजार में 3 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम में बेची जाती है, लेकिन सामान्य फार्म की दर लगभग रु। 125 से 200 रुपये प्रति किलो
वार्षिक आय की एक सामान्य गणना शायद इस प्रकार की गणना की जा सकती है:
एक एकर x 300 पोल एक्स 15 किग्रा (कम) x रु .25 (न्यूनतम) = रु। 5,62,500 = 00 प्रति एकड़ प्रति वर्ष
ध्यान दें:
· सभी गणना अच्छी तरह से बनाए गए खेत के लिए हैं
· सभी उपरोक्त गणना सबसे कम ओर हैं
· एक एकड़ में 400 पोल भी हो सकते हैं
· उचित खेती के तरीके / पोषक तत्व अधिक पैदावार दे सकते हैं
· उचित विपणन नेटवर्क या निर्यात बेहतर दरें ला सकते हैं
· नाइट लाइटिंग पद्धति फ्राईटिंग के अतिरिक्त तरंगों को दे सकती है
· मूल्य अतिरिक्त उत्पाद उच्च रिटर्न प्राप्त करेंगे
भारत में खेती की स्थिति और मांग:
महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के राज्यों में बहुत कम किसानों ने भारत में दार्गन फलों की खेती की है। ड्रैगन फलों की खेती का कुल अखिल भारतीय क्षेत्र शायद 100 एकड़ से कम हो। भारत में इसके फल, पोषण और औषधीय गुणों के लिए जागरूकता और मांग बहुत बड़ी है। भारत थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम और श्रीलंका से इसकी आवश्यकता का 95% आयात करता है। इस फल में खाड़ी, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्यात के लिए भी काफी संभावना है।
http://unnatkheti.com/2017/12/

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