शरीफा कि उन्नत आर्गनिक जैविक खेती फल वाली फसले
http://www.mykisandost.com/2016/09/sitafal-sarifa-ki-kheti-kese-kre-jankari.html
शुष्क जलवायु अनुकूल होती है . पाले से इन्हें हानी
होती है अधिक सर्द मौसम में फल सख्त हो जाते है तथा पकते नहीं है , फुल
आने के समय शुष्क मौसम होना लाभदायक होता है . किन्तु 40 डि . सेल्सियस से
अधिक होने पर फुल झड़ने लगते है . वर्षा ऋतू आने के साथ फल लगने प्रारंभ
हो जाते है . 50-75 से.मी. वार्षिक ओसत वर्षा उचित मानी जाती है .
भूमि :----
हलकी दोमट पथरीली चट्टानी भूमि जहा पानी का निकास अच्छा होता है . सीताफल अच्छी तरह से होते है एवं फलन भी अच्छी तरह होता है . भूमि का पी 0 एच 0 मान 5.5 से 6.5 के बिच उत्तम माना जाता है .
: प्रजातियाँ -
लाल सीताफल :-----
फल हलके रंग के होते है तथा ओसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष लगभग 40-50 फल आते है .
मेमाथ :----फल गोलाकार , आँखें बड़ी और गोल होती है फलों का स्वाद अच्छा है होता . प्रति वृक्ष 60-80 फल प्राप्त होते है . फल कि फांके गोलाई लिए काफी चौड़ी होती है .
वालानगर :-----
फलों का भार ओसतन 137 ग्राम एवं ओसत उपज 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है .
ब्रिटिश : ग्वाइना ---फलों का भार 145 ग्राम तक होता है . ओसत उपज 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है .
बरबेडोज : सीडलिंग ---
फलों का भार 145 ग्राम तक होता है . ओसत उपज 3.5-4.5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है . इनके अतिरिक्त सीताफल कि कुछ अन्य अच्छी किस्मे जैसे वाशिंटन पी 0 आई 0 107,005 , आदि है .
भूमि :----
हलकी दोमट पथरीली चट्टानी भूमि जहा पानी का निकास अच्छा होता है . सीताफल अच्छी तरह से होते है एवं फलन भी अच्छी तरह होता है . भूमि का पी 0 एच 0 मान 5.5 से 6.5 के बिच उत्तम माना जाता है .
: प्रजातियाँ -
लाल सीताफल :-----
फल हलके रंग के होते है तथा ओसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष लगभग 40-50 फल आते है .
मेमाथ :----फल गोलाकार , आँखें बड़ी और गोल होती है फलों का स्वाद अच्छा है होता . प्रति वृक्ष 60-80 फल प्राप्त होते है . फल कि फांके गोलाई लिए काफी चौड़ी होती है .
वालानगर :-----
फलों का भार ओसतन 137 ग्राम एवं ओसत उपज 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है .
ब्रिटिश : ग्वाइना ---फलों का भार 145 ग्राम तक होता है . ओसत उपज 4-5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है .
बरबेडोज : सीडलिंग ---
फलों का भार 145 ग्राम तक होता है . ओसत उपज 3.5-4.5 किलो ग्राम प्रति वृक्ष होती है . इनके अतिरिक्त सीताफल कि कुछ अन्य अच्छी किस्मे जैसे वाशिंटन पी 0 आई 0 107,005 , आदि है .
पौध : रोपण -शरीफा लगाने के लिए
वर्षा पूर्ब 4 गुणे 4 मी . कि दुरी पर 60 से.मी. लम्बे गहरे व चौड़े
गड्ढे तैयार कर ले प्रत्येक गड्ढे में 10 किलो ग्राम सड़ी हुयी गोबर कि खाद
ग्राम आर्गनिक खाद मिश्रण मिटटी में मिलाकर पौध लगाने के दस दिन 2 किलो
और पूर्ब गड्ढे में भर दे .
आर्गनिक खाद जैविक : खाद ---
:
अधिकान्शत शरीफा अनुपयोगी या अनुपजाऊ भूमि पर लगाये जाते है जहाँ खाद या
उर्बरक का उपयोग नहीं किया जाता है वास्तव में आवश्यक खाद कि मात्रा समय
समय पर देने से अच्छे फल और अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है .
सड़ी
हुयी गोबर कि खाद पहले वर्ष 10 किलो ग्राम दुसरे वर्ष 20 किलो ग्राम
तीसरे वर्ष 30 किलो ग्राम चौथे वर्ष 40 किलो ग्राम और 5 वर्ष या उससे
ज्यादा वर्षो में 50 किलोग्राम प्रति पौधा देते रहते है .
आर्गनिक
1 बैग माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट वजन खाद 40 किलो ग्राम , 1 बैग भू
पावर वजन 50 किलो ग्राम , 1 - बैग माइक्रो भू पावर वजन 10 किलो ग्राम , 1
बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन 10 किलो ग्राम , 1 - बैग माइक्रो नीम वजन
20 किलो ग्राम और अरंडी कि खली वजन 50 किलो ग्राम इन सब खादों को अच्छी तरह
मिलाकर मिश्रण तैयार 2 1 से किलो ग्राम और 6 से 12 साल के पौधे के लिए से
1 साल 5 साल तक के पौधे के लिए कर 3 से 5 किलो ग्राम और 12 साल से ऊपर
उम्र वाले पौधे कोआधा किलो ग्राम प्रति साल उम्र के हिसाब से जैसे 20 साल
के पौधे को 10 किलो ग्राम प्रति पौध खाद साल में दो बार देना चाहिए .
फुल
आने 15 -20 दिन पहले माइक्रो 50 झाइम से 0 मी.ली. और सुपर गोल्ड
मैग्नीशियम 2 किलो ग्राम 400 लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह घोलकर पम्प
द्वारा तर बतर कर छिड़काव करते है दूसरा छिड़काव फल लगने के 15-20 दिन बाद
तीसरा , चौथा हर 20-25 रोज बाद करते रहते है इससे भरपूर फुल आता है और फल
अच्छे लगते है और तंदरुस्त स्वादिष्ट होते है .
: सिंचाई -
सीता
फल में सिंचाई कि ओर बिशेष ध्यान नहीं दिया जाता है : अत गर्मी में
सप्ताह में एक बार व ठण्ड में 15-20 दिन बाद एक बार पानी देने से पैदावार
और पेड़ कि बृद्धि ठीक होती है बीजू पौधे 3-4 वर्ष व बडिंग 2 -3 में फल
देने लगते है अत वर्ष : फलो के समय सितम्बर से नवम्बर के बिच एक सिंचाई कर
दे .
किट : नियंत्रण -
मिली बग प्लेनोंकान्क्कास : पेसीफाईकस -
सफ़ेद
रुई कि संरचना वाले ये पौधे कि कोमल पत्तियां व शाखाओ को नुकसान पंहुचाते
है इनको नियंत्रण के लिए गौ मूत्र या नीम का काढ़ा माइक्रो झाइम के साथ
मिलाकरहर 15 दिन के अंतर पर छिड़काव 2-3 बार करे .
रोग : नियंत्रण ---
पिंक : रोग -
इस रोग कि रोकथाम के लिए गौ मूत्र या नीम का काढ़ा का माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर तर बतर कर 15-20 दिन के अंतर पर छिड़काव करे .
तुड़ाई व : उपज ---
प्रति
वर्ष प्रति पेड़ से लगभग 50-100 फल मिल जाते है शरीफा के फल तोड़ने के 1
सप्ताह लगभग बाद खाने योग्य होते है जब फल कुछ कठोर रहते है तभी तोड़ लेना
चाहिए अन्यथा पेड़ पर काफी दिनों तक रहने पर ये फटकर सड़ने लगते है .
छंटाई और : सधाई -
-
समय समय पर सुखी टहनीयओं को काट दे एवं फल तुड़ाई पश्चात् अनाश्यक रूप से
बढ़ी हुयी शाखाएं कि पेड़ को आकार देने के लिए हलकी छंटाई कर देनी चाहिए
सधाई आवश्यकता अनुसार एक निश्चित रूप में प्रदान करने के लिए आवश्यक है यह
कार्य समय - समय पर कि जाती हैhttp://www.mykisandost.com/2016/09/sitafal-sarifa-ki-kheti-kese-kre-jankari.html
Sitafal sarifa ki kheti kese kre puri jankari hindi me
हेल्लो दोस्तों नमस्कार
my kisan dost (खेती और किसानों से रिलेटेड जानकारी हिंदी में ) आपका
स्वागत है। मित्रों मुझे थोड़े दिनों पहले मुझे mykisan dost के regular
पाठक का मेल आया।उसने मुझसे सीताफल की खेती यानि शरीफा जिसे english में
Custard Apple भी कहते है। उसकी जानकारी माँगी उसने जब google पर सीताफल की
खेती कैसे करे सर्च किया तो सारे आर्टिकल english में मिले तो उसने मुझे
हिंदी में पोस्ट लिखने के लिए कहा तो आज की पोस्ट में हम
- सीताफल (शरीफा) Custard apple की खेती कैसे करे? के बारे में जानेंगे।
ताकि सभी किसान दोस्तों को इसका फ़ायदा मिल सके।
सीताफल एक मीठा फल हैं जिसमें काफी मात्रा में कैलोरी पायी जाती हैं। यह
आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है।इसके इस्तेमाल से कई तरीके के रोगों
से छुटकारा मिलता हैं। इसके बीज पत्ते छाल सभी को औषधि के रूप में उपयोग
किया जाता है।सीताफल का वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा हैं।
यह भारत के सभी प्रान्तों में पाया जाता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र मध्यप्रदेश आंध्र प्रदेश में ज्यादा देखे जा सकते हैं।यह आमतौर पर ढालू जमीन जैसे पहाड़ नदी के किनारे आदि जगह पर देखा जा सकता हैं। यह एक मात्र ऐसा फ़लदार पेड़ होता हैं जिस पर किसी भी प्रकार के रोग नही लगता हैं।
सीताफल के पौधे के लिए वैसे तो कोई विशेष जलवायु की आवश्यकता नही होती हैं। फिर भी अच्छे उत्पादन के लिए शुष्क और गर्म जलवायु अच्छी रहती है।ज्यादा ठंड और पाला पड़ने से इसके फल सख़्त हो जाते हैं।और वो पक नही पाते है। वर्षा ऋतु यानी जून जुलाई में फूल और सितम्बर से नोवेम्बर में फल लगने और पकने start हो जाते है । उस समय तापमान 40 डिग्री से ज्यादा नही होना चाहिए।
सीताफल के पौधों में अच्छे विकास के लिये हलकी दोमट रेतीली मिट्टी,पथरीली,जमीन और ढालू जमीन जहां पर पानी का निकास पूर्ण हो best रहती है।इसके लिए मिट्टी का p.h.मान 5.5 से 7 तक अच्छा रहता है। लेकिन इसे 7-9 p.h मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।
सीताफल में बहुत सारी किस्में होती है। में यहाँ जो ज्यादा उपयोग की जाती है। उन किस्मों के बारे में बताउगा।
1 सरस्वती 7 -महाराष्ट्र लगभग फल 50 से 85 प्रति पौधा
2 red custurd- लगभग फलो की संख्या 40 से 50
3 मेमाथ- लगभग फलो की संख्या 50 से 80 फल
4 bitish gawaina-लगभग फलो की 40 से 75
5 ए.ऐम के1-
6 अन्नोना2-
7 चांदसिली-
इनके अलावा- वाशिंगटन pi 107,005 और वालानगर,सीडलिंग आदि हैं।
स्वस्थ फल का वजन 100 ग्राम से लगाकर 150 किलो ग्राम तक हो सकता है ।
Sitafal की खेती के लिए पौधे को दो तरीके से की जा सकती हैं।
1 नर्सरी में पौधा तैयार कर के
2 बारिश में कलम द्वारा
शरीफा के पौधे को बरसात में लगाना सबसे अच्छा रहता है । इसलिए बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी. चौड़े और 80 सेमी. गहरे खड्डे खोदे। खड्डो से निकली हुई मिट्टी में 30 प्रतिशत अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद् और प्रति खड्डा 100 ग्राम डी ए पी मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को खड्डो में रोपाई कर दे और ऊपर से हाथों से तने की आसपास की मिट्टी को दबा दे नर्सरी में तैयार अच्छी किस्म के पौधे की कीमत 70 से 100 रूप ये तक होती है।एक हेक्टेयर में अनुमानित 450 पौधे तक लग सकते है।
अगर पौधे लगाने के बाद बरसात आती रहे हो सिंचाई के कोई आवश्यकता नही होती है। लेकिन बारिश ना आने पर अगर पौधे मुरझाये हुए हो तो एक बार सिंचाई कर दे और गर्मी के दिनों में एक week में सिंचाई करे और सर्दी के दिनों में महीने भर में एक बार सिंचाई कर सकते है। फल लगते समय एक सिंचाई ज़रुर करे ताकि व्रद्धि दर बड सके
सीताफल के पौधों को खाद् उर्वरक की बहुत कम आवश्यकता होती हैं। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए आप सड़ी हुई गोबर की खाद् और नाइट्रोजन,पोटाश,आदि दे सकते है।प्रति वर्ष फल तोड़ने के बाद पेड़ पर लगी सुखी टहनिया और अधिक बड़ी हुई शाखा को काट के अलग कर देना चाहिए।
इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते है।लेकिन कभी कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचने वाले किट और बग़ आ जाये तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें ख़तम कर दे और मौसम में परिवर्तन या अन्य कारणों से यदि फूल जड़ने लगे तो भी आप दवाई का उपयोग कर सकते है।
एक स्वस्थ सीताफल के पेड़ से औसत 80-100 फल मिल जाते है। फल जब पेड़ पर कठोर हो जाये तब उसे तोड़ लेना चाहिए ज्यादा दिनों तक पेड़ पर फल रहने से वो सख़्त हो कर फट जाता है। सामान्य रूप से पेड़ से फलो को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते है। लेकिन इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है।पेड़ पर पके हुए फल की पहचान आप फल पर काले भूरा रंग के धब्बों जिन्हें ग्रामीण बोली में आँख दिखना कहते है। कर सकते है। पके हुए फलो की बाज़ार में कीमत लगभग 150 किलो तक रहती है।
सीताफल के फल से एक मशीन के द्वारा गुददे और बीज को अलग निकला जाता है। उस निकले हुए गुददे से कड़वाहट ना आयें और सुरक्षित रखने के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है। एस मशीन से गुद्दे को एक साल तक सुरक्षित रख कर बाज़ार मे अच्छे भाव पर बेच सकते है। इस गूदे का उपयोग आइसक्रीम,रबड़ी और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है। इस मशीन का विकास राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परिय परियोजना(NAIP) योजना के तहत किया गया है।इसकी अधिक जानकारी के लिए राजस्थान के मित्र कृषि महाविद्यालय MPUAT उदयपुर में बाग़वानी विभाग से सम्पर्क करे।
यह भारत के सभी प्रान्तों में पाया जाता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र मध्यप्रदेश आंध्र प्रदेश में ज्यादा देखे जा सकते हैं।यह आमतौर पर ढालू जमीन जैसे पहाड़ नदी के किनारे आदि जगह पर देखा जा सकता हैं। यह एक मात्र ऐसा फ़लदार पेड़ होता हैं जिस पर किसी भी प्रकार के रोग नही लगता हैं।
शरीफा के लिए जलवायु:-
सीताफल के पौधे के लिए वैसे तो कोई विशेष जलवायु की आवश्यकता नही होती हैं। फिर भी अच्छे उत्पादन के लिए शुष्क और गर्म जलवायु अच्छी रहती है।ज्यादा ठंड और पाला पड़ने से इसके फल सख़्त हो जाते हैं।और वो पक नही पाते है। वर्षा ऋतु यानी जून जुलाई में फूल और सितम्बर से नोवेम्बर में फल लगने और पकने start हो जाते है । उस समय तापमान 40 डिग्री से ज्यादा नही होना चाहिए।
भूमि का चुनाव:-
सीताफल के पौधों में अच्छे विकास के लिये हलकी दोमट रेतीली मिट्टी,पथरीली,जमीन और ढालू जमीन जहां पर पानी का निकास पूर्ण हो best रहती है।इसके लिए मिट्टी का p.h.मान 5.5 से 7 तक अच्छा रहता है। लेकिन इसे 7-9 p.h मान वाली भूमि पर भी उत्पादन लिया जा सकता है।
सीताफल की मुख्य किस्में:-
सीताफल में बहुत सारी किस्में होती है। में यहाँ जो ज्यादा उपयोग की जाती है। उन किस्मों के बारे में बताउगा।
1 सरस्वती 7 -महाराष्ट्र लगभग फल 50 से 85 प्रति पौधा
2 red custurd- लगभग फलो की संख्या 40 से 50
3 मेमाथ- लगभग फलो की संख्या 50 से 80 फल
4 bitish gawaina-लगभग फलो की 40 से 75
5 ए.ऐम के1-
6 अन्नोना2-
7 चांदसिली-
इनके अलावा- वाशिंगटन pi 107,005 और वालानगर,सीडलिंग आदि हैं।
स्वस्थ फल का वजन 100 ग्राम से लगाकर 150 किलो ग्राम तक हो सकता है ।
पौधे की रोपाई:-
Sitafal की खेती के लिए पौधे को दो तरीके से की जा सकती हैं।
1 नर्सरी में पौधा तैयार कर के
2 बारिश में कलम द्वारा
शरीफा के पौधे को बरसात में लगाना सबसे अच्छा रहता है । इसलिए बरसात पूर्व 4×4 मीटर की दूरी पर 60×60 सेमी. चौड़े और 80 सेमी. गहरे खड्डे खोदे। खड्डो से निकली हुई मिट्टी में 30 प्रतिशत अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद् और प्रति खड्डा 100 ग्राम डी ए पी मिला कर एक दो अच्छी बरसात हो जाने के बाद पौधों को खड्डो में रोपाई कर दे और ऊपर से हाथों से तने की आसपास की मिट्टी को दबा दे नर्सरी में तैयार अच्छी किस्म के पौधे की कीमत 70 से 100 रूप ये तक होती है।एक हेक्टेयर में अनुमानित 450 पौधे तक लग सकते है।
सिंचाई कैसे करे:-
अगर पौधे लगाने के बाद बरसात आती रहे हो सिंचाई के कोई आवश्यकता नही होती है। लेकिन बारिश ना आने पर अगर पौधे मुरझाये हुए हो तो एक बार सिंचाई कर दे और गर्मी के दिनों में एक week में सिंचाई करे और सर्दी के दिनों में महीने भर में एक बार सिंचाई कर सकते है। फल लगते समय एक सिंचाई ज़रुर करे ताकि व्रद्धि दर बड सके
खाद् और पौधों की देखभाल:-
सीताफल के पौधों को खाद् उर्वरक की बहुत कम आवश्यकता होती हैं। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए आप सड़ी हुई गोबर की खाद् और नाइट्रोजन,पोटाश,आदि दे सकते है।प्रति वर्ष फल तोड़ने के बाद पेड़ पर लगी सुखी टहनिया और अधिक बड़ी हुई शाखा को काट के अलग कर देना चाहिए।
--फ़सलों में खाद् की कमी को कैसे पहचाने इस लिंक को ओपन करे--
रोग और किट:-
इस पर किसी भी प्रकार के रोग नही आते है।लेकिन कभी कभी पत्तियों को नुकसान पहुँचने वाले किट और बग़ आ जाये तो दवाई का स्प्रे कर उन्हें ख़तम कर दे और मौसम में परिवर्तन या अन्य कारणों से यदि फूल जड़ने लगे तो भी आप दवाई का उपयोग कर सकते है।
फलो की तुड़ाई :-
एक स्वस्थ सीताफल के पेड़ से औसत 80-100 फल मिल जाते है। फल जब पेड़ पर कठोर हो जाये तब उसे तोड़ लेना चाहिए ज्यादा दिनों तक पेड़ पर फल रहने से वो सख़्त हो कर फट जाता है। सामान्य रूप से पेड़ से फलो को तोड़ने के 6-9 दिनों में पक जाते है। लेकिन इन्हें कृत्रिम रूप से भी पकाया जा सकता है।पेड़ पर पके हुए फल की पहचान आप फल पर काले भूरा रंग के धब्बों जिन्हें ग्रामीण बोली में आँख दिखना कहते है। कर सकते है। पके हुए फलो की बाज़ार में कीमत लगभग 150 किलो तक रहती है।
सीताफल का प्रसंस्करण:-
सीताफल के फल से एक मशीन के द्वारा गुददे और बीज को अलग निकला जाता है। उस निकले हुए गुददे से कड़वाहट ना आयें और सुरक्षित रखने के लिए इस मशीन का उपयोग किया जाता है। एस मशीन से गुद्दे को एक साल तक सुरक्षित रख कर बाज़ार मे अच्छे भाव पर बेच सकते है। इस गूदे का उपयोग आइसक्रीम,रबड़ी और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता है। इस मशीन का विकास राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परिय परियोजना(NAIP) योजना के तहत किया गया है।इसकी अधिक जानकारी के लिए राजस्थान के मित्र कृषि महाविद्यालय MPUAT उदयपुर में बाग़वानी विभाग से सम्पर्क करे।
शासन का सीताफल पर अनुदान:-
मध्यप्रदेश और राजस्थान में सीताफल के पौधे किसान अपनी स्वयं की जमीन पर
लगता है और उसे जीवित रखता है तो अनुदान मिलता है। अन्य राज्यों के किसान
दोस्तों अपने जिले में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से सम्पर्क करे। और
आवेदन दे।अलग अलग राज्यों में योजनाएं और नियम अलग है।मध्यप्रदेश में कम से
कम 100 और अधिकतम 1500 पोधों पर अनुदान है।
दोस्तों आपको आज की ये जानकारी केसी लगी मुझे comment ज़रुर बताये।और हमारा फेसबुक pege like जरूर करे। इस जानकारी को आप अपनी सोशल saide पर नीचे दिए गये बटन से शेयर कर अपने मित्रों तक जानकारी पंहुचा सकते है!
ड्रिप तकनीक से करते हैं
सिंचाई
आमतौर पर किसान शरीफा में सिंचाई कि ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन
नवनाथ ने अपनी 35 एकड़ की बाग में ड्रिप सिंचाई तकनीक लगा रखी है, जिससे
बूंद-बूंद कर सिंचाई की जाती है। गर्मी में हफ्ते में एक बार और सर्दी में
15-20 दिन बाद एक बार सिंचाई करते हैं।
https://www.gaonconnection.com/swayam-project/farmer-earning-millions-custard-apple-farming
https://www.gaonconnection.com/swayam-project/farmer-earning-millions-custard-apple-farming
ड्रिप तकनीक से करते हैं
सिंचाई
आमतौर पर किसान शरीफा में सिंचाई कि ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन
नवनाथ ने अपनी 35 एकड़ की बाग में ड्रिप सिंचाई तकनीक लगा रखी है, जिससे
बूंद-बूंद कर सिंचाई की जाती है। गर्मी में हफ्ते में एक बार और सर्दी में
15-20 दिन बाद एक बार सिंचाई करते हैं।
https://www.gaonconnection.com/swayam-project/farmer-earning-millions-custard-apple-farming
https://www.gaonconnection.com/swayam-project/farmer-earning-millions-custard-apple-farming
No comments:
Post a Comment