Friday, July 23, 2010

मैं भी वेश्या, तू भी वेश्या... नीरेंद्र नागर Friday July 23, 2010

मेरी पिछली पोस्ट पर कॉमेंट करते हुए कुछ पाठकों ने आरोप लगाया कि मैंने वेश्याओं का अपमान किया है। मैंने उस पोस्ट में दूसरों की पत्नी और बहन के फोन नंबर मांगनेवाले पाठकों के लिए लिखा था कि उनको वाकई अपनी सेक्स की भूख मिटानी है तो या तो अपनी पत्नी के पास जाएं या फिर रेड लाइट एरिया में।

अब इसे कुछ पाठकों ने वेश्याओं का अपमान मान लिया। मेरा कहना है कि अगर आपने अपने घर में गाय पाल रखी है और कोई बंदा आपके घर गाय बंधी देखकर पूछे कि भैया, दूध कैसे दिया तो आप क्या कहेंगे? यही न कि भैया, हम दूध नहीं बेचते। दूध खरीदना हो तो ग्वाले के पास जाओ या मदर डेरी के बूथ पर। अब बताइए, यह कहकर क्या आप ग्वाले या मदर डेरी वाले का अपमान कर रहे हैं? जैसे ग्वाला दूध बेचता है, वैसे ही औरतें (और अब तो पुरुष भी) अपना शरीर बेचती हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है।

बल्कि मेरा तो मानना है कि हम सब – जी हां हम सब – वेश्याएं ही हैं। वे मजबूरी में या स्वेच्छा से पैसों की खातिर अपना शरीर बेचती हैं, हम भी मजबूरी में या स्वेच्छा से पैसों के लिए अपना समय, अपना हुनर, अपनी सेवाएं, यहां तक कि अपना ईमान बेचते हैं। दोनों में कोई फर्क नहीं है सिवाय इसके कि वेश्याओं को यह सभ्य समाज नीची नज़रों से देखता है और हम और आप जैसों को इज़्जत से।

अपनी समझ से मैंने वेश्याओं को – और हम-आप जैसों को भी – चार कैटिगरीज़ में बांटा है। ये श्रेणियां हैं पीड़ित, मजबूर, पेशेवर और बेईमान।

पीड़ित वेश्याएं वे हैं जो बहला-फुसला कर इस धंधे में लाई गई हैं। किसी को शादी का वादा करके कोई लफंगा कोठे पर बेच आया है, किसी को उसके सगेवालों ने ही बेच दिया है। इस तरह की वेश्याओं को पूरे दाम भी नहीं मिलते। वे इस पेशे से निकलना चाहती हैं लेकिन निकल नहीं पाती हैं। सबसे ज्यादा शोषण इन्हीं का होता है।


मैं जब ढाबे या चाय वाले के यहां काम करनेवाले बच्चों को देखता हूं तो लगता है, उनका दुख और इन पीड़ित वेश्याओं का दुख एक जैसा है। न पूरा पैसा, न काम की इज्जत। हर बात पर गालियां, गलती करने पर थप्पड़। ये हैं पीड़ित वेश्याएं।

इसके बाद आती हैं मजबूर वेश्याएं। मजबूर वेश्याएं वे हैं जो हालात की मारी हैं। वे यह काम नहीं करना चाहतीं लेकिन कोई विकल्प नहीं है। कोई और हुनर है नहीं और इस धंधे में गुज़र-बसर करने लायक पैसे मिल जाते हैं। उन्हें किसी ने बांधकर नहीं रखा लेकिन वे जाएं भी तो कहां जाएं, यह सोचकर इसी पेशे में जीवन काट देती हैं।


दुनिया के सारे लोग जिन्हें अपना काम पसंद नहीं है लेकिन जो कुछ और काम जानते भी नहीं, वे इसी कैटिगरी में आते हैं। कोई डाकिया जो डाक बांटना पसंद नहीं करता लेकिन करता है, कोई चौकीदार जिसकी चौकीदारी में कोई दिलचस्पी नहीं है मगर कोई और काम भी नहीं जानता, कोई सेल्समैन जो सुबह का निकला रात को घर लौटता है और अपने काम से बहुत नफरत करता है – ये सारे लोग इसी श्रेणी के हैं। काम पसंद नहीं लेकिन पेट के लिए किए जा रहे हैं। कोई और हुनर आता या काम मिलता तो वे यह काम कभी नहीं करते। तो ये हैं मजबूर वेश्याएं।

तीसरी कैटिगरी है पेशेवर वेश्याओं की। ये वे वेश्याएं हैं जो अपनी इच्छा से यह काम कर रही हैं क्योंकि इसमें उनको कोई बुराई नहीं लगती और कम टाइम में ही अच्छा पैसा मिल जाता है। वे सारी वेश्याएं जो ऊंचे सर्कल में हैं, अपने धंधे से अच्छा कमाती हैं और ठाठ से रहती हैं, वे इस श्रेणी में आती हैं। ये न विक्टिम हैं न मजबूर। और इसी श्रेणी में आते हैं सारे प्रफेशनल्स – पत्रकार, वकील, डॉक्टर, प्रफेसर, पॉलिटिशंस, बिज़नेसमेन। इन लोगों ने अपना पेशा खुद चुना है और इस पेशे से अच्छा कमाते भी हैं। पेशे से जुड़ी सारी गंदगी, सारी सड़न को ये मन से अपनाते हैं क्योंकि गंदा है पर धंधा है, और सबसे बड़ी बात - पैसा भी तो चंगा है। ये लालची लोगों की जमात है जिनका पेट कभी नहीं भरता। पैसों के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं – कुछ भी। लेकिन समाज में सारे पावरफुल ओहदों पर यही लोग मिलेंगे। ये हैं पेशेवर वेश्याएं।

अब नंबर आता है बेईमान वेश्याओं का। ये वे वेश्याएं हैं जिनको लोग वेश्या नहीं कहते क्योंकि ये अपना धंधा सरेआम नहीं करतीं। ये ऑफिसों में होती हैं, राजनीतिक दलों में होती हैं, फिल्मों में होती हैं और किसी खास सपने का पीछा करती हुईं किसी खास ऊंचाई तक पहुंचने के लिए अपने शरीर को औजार के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। ये किसी ताकतवर इंसान की शारीरिक भूख का नाजायज़ लाभ लेती हुईं किसी दूसरे टेलंटिड व्यक्ति के सर पर पैर रखकर आगे बढ़ जाती हैं। मुझे इन बेईमान वेश्याओं से घोर नफरत है क्योंकि बाकी सारी वेश्याएं जो करती हैं, खुलेआम करती हैं, अपनी ज़रूरत या लालच के लिए अपना शरीर बेचती हैं, किसी और का कोई नुकसान नहीं करतीं, किसी और को कुचल कर आगे नहीं बढ़तीं।


इन्हीं की तरह और यही काम करते हैं वे सारे लोग जो अपने बाप की सिफारिश या पहुंच या पैसों की ताकत के बल पर कोई जगह हासिल कर लेते हैं। कोई स्ट्रगलर बॉलिवुड में चप्पल घिस-घिसकर मर जाएगा लेकिन किसी पॉलिटिशन या सुपरस्टार का बेटा चुटकी में हीरो का रोल पा जाएगा, पार्टी का वर्कर पुलिस की लाठियां खाता रहेगा और ब्लॉक लेवल से आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन मुख्यमंत्री का बेटा अपने सरनेम के कारण युवा शाखा का अध्यक्ष बन जाएगा। प्रतिभावान कैंडिडेट ऐप्लिकेशन देता-देता थक जाएगा और सिफारिशी टट्टू बाप की सिफारिश या रिश्वत के बल पर सीधा अफसर की कुर्सी पर बैठ जाएगा। ये सब बेईमान वेश्याएं हैं।

तो ये हुईं वेश्याओं की – यानी हमारी-आपकी – चार श्रेणियां। आप देख लीजिए – आप किस श्रेणी में आते हैं। एक बार पता चल जाएगा तो फिर कभी किसी पीड़ित, किसी मजबूर और यहां तक कि किसी पेशेवर वेश्या से भी घृणा नहीं करेंगे। क्योंकि अगर आप उनसे घृणा करेंगे तो फिर खुद से भी घृणा करनी पड़ेगी।

यहां पर कोई पूछ सकता है – क्या हममें से कोई ऐसा नहीं जो वेश्यावृत्ति नहीं करता? क्या हर कोई वेश्या है? इसका जवाब पाने के लिए हमें फिर से वेश्यावृत्ति की परिभाषा पर जाना होगा। वेश्यावृत्ति क्या है – पैसों के लिए शरीर को किसी ऐसे व्यक्ति को सौंपना जिसे हम पसंद नहीं करते। इस क्रिया में आनंद नहीं है – उस व्यक्ति के लिए तो बिल्कुल नहीं जो अपना शरीर सौंपता है। लेकिन यही काम अगर दो व्यक्ति अपनी इच्छा से, आपसी सहमति से, बिना किसी दूसरे लालच या मजबूरी के करते हैं तो वह वेश्यावृत्ति नहीं है, वह सिर्फ आनंदकर्म है। इसी तरह अगर एक इंसान कोई काम केवल इसीलिए कर रहा है कि उसे करने में उसका दिल लगता है, उसे सुख और सुकून मिलता है तो वह वेश्यावृत्ति नहीं कर रहा। मैं जब अपनी साइट के लिए मसालेदार खबरें खोजता हूं तो मैं वेश्यावृत्ति कर रहा होता हूं लेकिन जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं तो मैं वेश्यावृत्ति नहीं कर रहा। इसी तरह जब मैंने अपनी किशोरावस्था में कमज़ोर लड़कों को फ्री का पढ़ाया था तब भी मैं वेश्यावृत्ति नहीं कर रहा था। यानी एक ही व्यक्ति एक समय में वेश्या और दूसरे समय में अवेश्या हो सकता है।

इस देश में हज़ारों लोग हैं जो बिना पैसों के लालच के अपना काम कर रहे हैं – गांवों में, जंगलों में, पहाड़ों में। कोई आदिवासियों के बीच, कोई दलितों के बीच, कोई झोपड़पट्टियों में। कोई उन्हें पढ़ा रहा है, कोई उनको न्याय दिलाने के लिए लड़ रहा है, कोई विपत्ति में फंसे लोगों की मदद कर रहा है। उनके हाथ में जो झंडे हैं, उनका रंग चाहे कुछ भी हो लेकिन उनके सपनों का रंग एक ही है। इन्हीं के लिए मैं कह सकता हूं – हां, ये वेश्याएं नहीं हैं। यही वे लोग हैं जो एक सार्थक ज़िंदगी जी रहे हैं। बाकी हम सब तो... बस वेश्यावृत्ति कर रहे हैं।

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